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दिनेश कुकरेती
रात के सवा दस बज चुके थे। आफिस से घर लौटने का समय हो गया था। मैं भी कंप्यूटर बंद कर घर लौटने की तैयारी कर रहा था, तभी गुसाईं जी आफिस में प्रविष्ठ हुए और मेरे पास आकर बोले- "गाडी़ पंचर हो गई है, आपको मुझे छोड़कर आना होगा।"
मैं बोला- "ठीक है"। फिर मेरे मन में विचार आया कि क्यों न बाइक गुसाईं जी को ही दे दूं। कल आ तो जाएगी वापस। सो, मैंने गुसाईं जी मुखातिब होते हुए कहा- "बाइक आप ले जाओ"।
"फिर आप कैसे जाओगे"- गुसाईं जी ने कहा।
"पैदल चला जाऊंगा"- मैंने जवाब दिया।
गुसाईं जी ने सहमति में सिर हिलाया, लेकिन फिर कुछ सोचकर बोले- "मैं आपको छोड़ता हुआ चला जाऊंगा। मेरा रास्ता भी वही है"।
मैंने कहा- "ठीक है" और फिर मैं सामान समेटने लगा।
तभी गुसाईं जी फिर बोले, "पर, मैं सुबह बाइक आपको लौटाऊंगा कहां"।
"सुबह आफिस तो आओगे ही, पार्किंग में खडी़ कर देना"- मैंने कहा।
"...तो आप आफिस कैसे आओगे"- गुसाईं जी बोले।
"आ जाऊंगा टहलते हुए पैदल ही, कोई बहुत दूर थोडे़ है"- मैंनै कहा। इसके बाद मैंने हैलेमेट रैक में रखा और चल पडे़ पार्किंग की तरह। गुसाईं जी ने अपना हैलमेट भी साथ ले लिया।
पार्किंग में मैंने बाइक गुसाईं जी के हवाले कर दी और पकड़ ली घर की राह। गुसाईं जी ने मुझे बिल्कुल मेरे घर के पास ही ड्राप किया और आगे बढ़ गए। यहां से मुझे बामुश्किल 40 मीटर पैदल चलना पडा़ होगा।
रूम में आने के बाद मैं सीधे भोजन बनाने में जुट गया। पानी भरने का नंबर तो अभी मेरा आने वाला नहीं था, क्योंकि पीछे वाले दो परिवार भी यहीं से पानी भरते हैं। प्रेशर कम होने के कारण पानी पीछे वाले घरों में नहीं पहुंचता। और...हाल ये है कि वो तब तक नल नहीं छोड़ते, जब तक कि सभी बर्तन न भर जाएं।
अमूमन पौने बारह के आसपास वो मुझे आवाज देते हैं कि पानी भर लीजिए। मेरे लिए पंद्रह मिनट ही काफी हैं। दो-एक बर्तन धोने होते हैं और दो-एक बोतल भरनी होती हैं। बाकी तो मैं दिन में ही भर लेता हूं। इसके बाद तसल्ली से हाथ-पैर व मुंह धोता हूं। ये मेरा नियम है। आज तक मैं कभी भी बिना हाथ-पैर व मुंह धोए बिस्तर में नहीं गया।
इस समय मैं बिस्तर में ही हूं और डायरी लिख रहा हूं। घडी़ रात के पौने दो बजा रही है। बोझिल आंखें कह रही हैं कि बहुत हो गया, क्यों न अब नींद ले ली जाए। भई! आंखों की तो सुननी ही पडे़गी। ...तो कल मिलते हैं, शुभरात्रि!!
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Scooty got punctured
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Dinesh Kukreti
It was half past ten in the night. It was time to return home from the office. I was also preparing to return home by turning off the computer, when Gusain ji entered the office and came to me and said - "The car has been punctured, you have to leave me and come."
I said- "Okay". Then a thought came to my mind that why not give the bike to Gusain ji only. Will come back tomorrow. So, I turned to Gusain ji and said - "You take the bike".
"Then how will you go?" - said Gusain ji.
"I'll go on foot" - I replied.
Gusain ji nodded his head in agreement, but then after thinking something said - "I will leave you and go away. My path is also the same".
I said- "Okay" and then I started packing things up.
Then Gusain ji said again, "But, where will I return the bike to you in the morning".
"You will come to the office in the morning, park it in the parking lot" - I said.
"... then how will you come to the office" - said Gusain ji.
"I will come and walk on foot, someone is very far away" - I said. After this I put the helmet in the rack and walked like a parking lot. Gusain ji also took his helmet with him.
In the parking lot, I handed over the bike to Gusain ji and took my way home. Gusain ji dropped me right near my house and moved on. From here I would have to walk hardly 40 meters.
After entering the room, I directly started preparing the food. The number to fill water was not yet my arrival, because the two families behind also fill water from here. Due to low pressure, water does not reach the houses behind. And...the problem is that they don't leave the tap until all the pots are full.
Usually around quarter to twelve, they give me a voice to fill water. Fifteen minutes is enough for me. Two dishes each have to be washed and two bottles have to be filled. I fill the rest during the day itself. After this, I wash my hands, feet and mouth calmly. This is my rule. Till date I have never gone to bed without washing my hands, feet and mouth.
Right now I am in bed and writing a diary. The clock is playing quarter past two. The cumbersome eyes are saying that enough is enough, why not take sleep now. Hey! You have to listen to your eyes. ...so see you tomorrow, goodnight!!
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