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दिनेश कुकरेती
निश्चित रूप से अब आप मेरी दिनचर्या से वाकिफ हो चुके होंगे। मेरे जैसे सामान्य रहन-सहन वाले हर व्यक्ति की यही दिनचर्या है। सुखद यह है इस संकटकाल में भी मेरे और मेरे जैसे लोगों के पास काम है, अन्यथा सोच-सोचकर ही बीमार पड़ जाते। असल में इस संकटकाल में वही व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है, जो मानसिक रूप से मजबूत हो। जिसकी सोच सकारात्मक हो। जो प्रकृति और संस्कृति के करीब हो। ...और इस सबसे बढ़कर जिसके पास रोजी-रोटी का जरिया हो। संयोग से मैं इन सभी मानकों पर खरा उतरता हूं। इसलिए माना जा सकता है कि मैं सुकून में हूं।
ज्ञान से इतर अब बात करते हैं व्यवहार की। जीवन के साथ चलने वाले झमेलों की। होटल के बिल के जिस झमेले का जिक्र मैं बीते तीन दिन से कर रहा हूं, वह अभी भी ज्यों का त्यों है। मुझे यकीन था कि हरिद्वार से लखेडा़ जी का फोन जरूर आएगा, लेकिन जिस अंदाज में आया, उस पर यकीन करने को जी नहीं कर रहा। शाम के तकरीबन साढे़ चार बजे रहे होंगे, जब उनका फोन आया। सीधे मुद्दे पर आते हुए बोले, 'मैं होटल में कह देता हूं कि उन पैसों को भूल जाओ। ये समझ लेना कि हमने किसी की मदद की।'
यह सुनकर मुझे गुस्सा भी आया और पीडा़ भी हुई कि खामखां यह सुनना पड़ रहा है। हालांकि, खुद को संयत करते हुए मैंने कहा- 'कल हर हाल में पैसे पहुंच जाएंगे। आज किसी कारण पेमेंट नहीं हो पाया।' इस पर लखेडा़ यह कहने तक से नहीं चूके कि, 'है ही कितनी रकम, आधा-आधा मिलाकर दे देते।' उनकी इस बात पर मैं कुछ नहीं बोला। लेकिन, मन ही मन तय कर दिया कि कल सुबह दस बजे तक हर हाल में अपने खाते से पैसे भेज दूंगा। किसी और के लिए हो न हो, लेकिन मेरे लिए तो यह बहुत बडी़ बात थी। मैं तो इसे जलालत कहता हूं।
खैर! कल तो इस झमेले को निपटा ही दूंगा। पर, आज का जो मजेदार वाकया रहा, वह था हमारे एकाउंट सेक्शन में पैसे का न होना। जब मैंने एकाउंट सेक्शन में जाकर बिल के बकाया भुगतान की बात की तो मुझे बताया गया कि फिलहाल बजट नहीं है। हालांकि, बिल पास हो चुका है। इसका मतलब साफ है कि कल भी पैसे नहीं मिलने वाले। अपने खाते से ही भुगतान करना पडे़गा। चलिए! ये भी मेरे लिए एक सबक है और हर सबक कुछ-न-कुछ सिखाता जरूर है। बाकी बातें कल होंगी। शुभरात्रि!!!
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I am strong
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Dinesh Kukreti
Surely you must be familiar with my routine by now. This is the routine of everyone living a normal living like me. It is pleasant that even in this crisis, people like me and me have work, otherwise they would have fallen ill after thinking. In fact, in this crisis, only the person who is mentally strong can remain healthy. One who has positive thinking. Which is close to nature and culture. ...and above all who has a means of livelihood. Incidentally, I meet all these standards. So it can be assumed that I am at peace.
Apart from knowledge, now we talk about behavior. Of the messes that go along with life. The hotel bill issue which I have been mentioning for the last three days is still the same. I was sure that Lakheda ji's call would definitely come from Haridwar, but I can't believe the way it came. It must have been about half past four in the evening when his call came. Coming straight to the point, he said, 'I tell the hotel to forget that money. Understand that we have helped someone.
Hearing this, I got angry and also pained that I have to listen to this. However, while restraining myself, I said- 'Tomorrow, the money will arrive. Today the payment could not be done due to some reason. On this, Lakheda did not even stop to say, "What is the amount, they would have given it half by half." I did not say anything about this. But, I have decided in my mind that by 10 o'clock tomorrow morning, I will send money from my account in any case. It may not be for anyone else, but for me it was a big deal. I call it Jalalat.
Well! Tomorrow I will settle this mess. But today's funny incident was the lack of money in our account section. When I went to the accounts section and talked about the outstanding payment of the bill, I was told that there is no budget at the moment. However, the bill has been passed. It means that even tomorrow the money will not be available. You will have to pay from your account only. Let go! This too is a lesson for me and every lesson definitely teaches something or the other. The rest will happen tomorrow. good night!!!
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