Wednesday, 9 June 2021

08-05-2021 (knowledge of corona era)

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कोरोना काल का ज्ञान

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दिनेश कुकरेती

मझ नहीं आ रहा कि इस संकटकाल में क्या नया किया जाए। घर से बाहर निकलो तो कोरोना संक्रमण का भय और अंदर गर्मी और उमस से बुरा हाल। कोई सोये भी तो कितना। उस पर जरा बिजली गुल हो जाए तो तन पसीने से लथपथ हो उठता है। फिर, मेरे जैसे लोगों के लिए तो घर से बाहर निकलना नितांत जरूरी है। नौकरी ही ऐसी है। लोगों को लगता है कि हम जैसे मजे किसी और के नहीं, पर हकीकत क्या है, यह तो हमीं जानते हैं। खासकर मुझ जैसे लोग, जो पत्रकारिता को आदर्श मानकर इस क्षेत्र में आए थे।

खैर! फिलहाल पूरी दुनिया कोरोना की मार से कराह रही है। भारत जैसे गरीब देश में तो और भी बुरा हाल है। पहले लाकडाउन और अब कोविड कर्फ्यू ने करोड़ों लोगों को सड़क पर ला दिया है। सुकून में हैं तो सिर्फ सरकारी नौकरी करने वाले लोग। प्राइवेट नौकरी वालों की तो कहीं सुनवाई तक नहीं है। छोटी-मोटी कंपनियों में काम करने वालों को तो रोटी के भी लाले पडे़ हुए हैं। जिनके पास नौकरी है भी, वो भी सुरक्षित होने का दावा नहीं कर सकते। चुनिंदा सुविधा संपन्न देशों को छोड़ दें तो बाकी पूरी दुनिया की कमोबेश यही तस्वीर है।

इन परिस्थितियों में कोई खुद को संभाले भी तो कैसे। बीमारी की आशंका भी चिंतित कर रही है और बीमारी के बाद के हालात भी। गरीब आदमी बीमारी से बच गया तो बेरोजगारी उसकी जान ले लेगी। वह तो मेरा स्वयं पर नियंत्रण है, अन्यथा अब तक मैं भी इन परिस्थितियों से हार चुका होता। सच कहूं तो कोरोना से लड़ने का यही एकमात्र तरीका है। लेकिन, इसके लिए प्राकृतिक नियम-कायदों का पालन करना होगा। खासकर सांसों पर नियंत्रण करना सीखना होगा। क्योंकि, कुदरत ने हमें बहुत कम सांसें दी हैं। हम इन्हें जितना संभालकर रखेंगे, जिंदगी उतनी ही खुशहाल रहेगी।

कहने का मतलब धैर्य ही हमें विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में विजय दिलाएगा। मेरे स्वयं के अनुभव तो यही कहते हैं। मैंने साधारण जीवन जीते हुए, स्वयं को असाधारण महसूस करने के गुर सीखे हैं। इसीलिए मैं हर संकट से पार पा लेता हूं। खैर! ज्ञान अच्छा तभी लगता है, जब वो लंबा व बोझिल न हो। ज्ञान को हमेशा सलाद की तरह इस्तेमाल करना चाहिए और प्रसाद की तरह थोडा़-थोडा़ बांटना चाहिए। तभी इसमें आनंद है। फिर इस वक्त रात भी काफी हो चुकी है। नींद की खुमारी ज्ञान में खलल डाल सकती है। इसलिए बाकी बातें कल होंगी। तब तक के लिए इजाजत दीजिए। नमस्कार!

08-05-2021

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Knowledge of corona era

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Dinesh Kukreti

I don't know what to do in this crisis.  If you come out of the house then there is a fear of corona infection and bad condition due to heat and humidity inside.  How much does anyone sleep?  If there is a slight power failure on it, then the body becomes soaked with sweat.  Again, for people like me, it is absolutely necessary to step out of the house.  Such is the job.  People think that we are not as fun as anyone else, but we know what the reality is.  Especially people like me, who came to this field considering journalism as ideal.

Well!  Right now the whole world is groaning due to Corona.  In a poor country like India, the situation is even worse.  First the lockdown and now the Kovid curfew has brought crores of people on the road.  If you are in peace, then only people doing government jobs.  There is no even listening to the people of private jobs.  Those working in small companies are also hungry for bread.  Even those who have a job cannot claim to be secure.  Barring a select few privileged countries, the rest of the world has more or less the same picture.

How can one handle himself in these circumstances?  The fear of disease is also worrying and the situation after the disease is also worrying.  If the poor man survives the disease, unemployment will kill him.  That is my self-control, otherwise I would have been defeated by these circumstances by now.  To be honest, this is the only way to fight Corona.  But, for this, natural rules and regulations have to be followed.  Especially have to learn to control the breath.  Because, nature has given us very few breaths.  The more we take care of them, the happier life will be.

It means to say that patience will give us victory in the most adverse situations.  This is what my own experiences say.  I have learned how to feel extraordinary by living an ordinary life.  That's why I overcome every crisis.  Well!  Knowledge is good only when it is not long and burdensome.  Knowledge should always be used as a salad and should be distributed little by little as prasad.  Then there is joy in it.  Then by this time the night has also been enough.  Sleep deprivation can disturb knowledge.  So the rest will happen tomorrow.  Allow till then.  Hi!

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