Tuesday, 29 June 2021

21-06-2021 (आभासी दुनिया के दोस्त और जन्मदिन )


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आभासी दुनिया के दोस्त और जन्मदिन 
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दिनेश कुकरेती
मुझे जन्मदिन मनाने का क्रेज कभी नहीं रहा। मेरे लिए तो हर दिन खास है। हर दिन की एक समान अहमियत है। हां! पहले इस दिन घर में पूजा जरूर हुआ करती थी। दीप प्रज्ज्वलित  किया जाता था। अब तो यह भी 12-13 साल पुरानी बात हो चुकी है। ऐसा क्यों हुआ, मुझे इसकी वजह भी नहीं मालूम। सच कहूं तो जन्मदिन के मौके पर मोमबत्ती बुझाने की परंपरा मुझे कतई पसंद नहीं रही। मैं तो दीप प्रज्ज्वलित करने वाली परंपरा से आता हूं। दीप बुझाने की अनुमति न तो हमारी संस्कृति देती है और न संस्कार ही। फिर मोमबत्ती भी दीप का ही प्रतिरूप तो है। रही बात शुभकामनाओं की, वह तो अंतर्मन की अभिव्यक्ति हैं, जो उत्साहवर्द्धन ही करती हैं।

फेसबुक का कमाल देखिए कि शुभकामनाएं मध्यरात्रि के बाद से ही मिलने लगती हैं। मुझे भी रात से ही मिलनी शुरू हो गई थीं। इनमें रेडीमेड और लिहाजदारी के शुभकामना संदेश बहुत ज्यादा हैं। आभासी दुनिया का यही दस्तूर है। जो फेसबुक पर शुभकामनाएं देते हैं, सामने मिलने पर वो हाय-हैल्लो करना भी जरूरी नहीं समझते। अभी शाम के चार बजे हैं और 160 से अधिक फेसबुक मित्र शुभकामनाएं दे चुके हैं। अलग-अलग अंदाज में। कुछ ने लिखा है एचबीडी तो कुछ ने शुभकामना। माना गुस्से में पत्थर मार रहे हों। कुछ इमोजी भी भेज रहे हैं। ये लिहाजदारी की शुभकामनाएं हैं, जो एक-दूसरे की देखा-देखी दी जाती हैं। इनका उद्देश्य फेसबुक मित्र होने के नाते अपनी इज्जत बचाना होता है।
  शुभकामनाओं का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता। कुछ फेसबुक मैसेंजर में भेज रहे हैं तो कुछ वाट्सएप में। इनमें अधिकांश आत्मीयजन हैं। खासकर वाट्सएप में भेजने वाले। वाट्सएप में सबसे पहले शुभकामना संदेश सुबह साढे़ छह बजे के आसपास मेरी पत्नी रजनी और छोटी बिटिया साक्षी की ओर से भेजे गए। साक्षी अपनी मां को बता रही थी कि पापा का जन्मदिन आज ही है, न कि 20 जून को। इसलिए उसने कल विश नहीं किया। ये बात रजनी ने मुझे फोन पर बताई। एक बेहद करीबी मित्र मुकेश नौटियाल ने तो बाकायदा फोन कर मुझे शुभकामनाएं दीं। तो एक मित्र ने स्पेशल मैसेज भेजकर, क्षमा प्रार्थना के साथ।

यह सिलसिला आफिस में भी चलता रहा। दरअसल किसी भी पत्रकार साथी के जन्मदिन पर मुख्यालय नोएडा से एचआर टीम की ओर से शुभकामना संदेश आता है। यह संदेश पूरे स्टाफ को कापी होता है, इसलिए अधिकांश लोग लिहाजदारी में संबंधित रिपोर्टर या डेस्क के साथी को शुभकामनाएं देते हैं। पिछले आठ साल साल से यह परिपाटी चली आ रही है। पर, मजा देखिए, मुझे शुभकामना वाली ऐसी मेल कभी नहीं मिली, इसलिए आफिस में किसी को पता भी नहीं चलता है। मैं मेल न मिलने को अन्यथा भी नहीं लेता। हालांकि, आज न जाने कैसे पता चल गया आफिस में दो-एक साथियों को और उन्होंने मुझे शुभकामनाएं भी दीं। मुझे लगता है प्रेस क्लब वाले ग्रुप या फेसबुक से ही उन्हें यह जानकारी मिली होगी।

  खैर! ये सिलसिला तो अभी दो-एक दिन चलता रहेगा। हां! इस लिहाज से यह दिन मेरे लिए खास है कि मैंने अब और ज्यादा पुस्तकें पढ़ने का संकल्प लिया है। अच्छी, ज्ञानवर्द्धक, वैज्ञानिक सोच विकसित करने वाली, तर्कपूर्ण और प्रगतिशील। सच कहूं तो पुस्तकें ही मेरी सबसे करीबी साथी हैं। मुझे आगे बढ़ने की राह सुझाती हैं और मेरे कष्ट मिटाती हैं। मेरा सपना है कि कभी मैं मकान बना सकूं तो उसमें मेरी पर्सनल लाइब्रेरी भी होगी। जो दुनिया की दुर्लभ पुस्तकों का भंडार होगी। उम्मीद है कि ये सपना अवश्य पूरा होगा, क्योंकि ये दुनिया का सबसे उत्कृष्ट सपना है।

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Virtual world friends and birthdays
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Dinesh Kukreti
I have never been crazy about celebrating birthdays.  For me every day is special.  Every day has equal importance.  Yes!  Earlier on this day worship was definitely done in the house.  The lamp was lit.  Now this too is 12-13 years old.  Why this happened, I do not even know the reason.  To be honest, I did not like the tradition of lighting candles on the occasion of birthday.  I come from the tradition of lighting the lamp.  Neither our culture nor our culture gives permission to light the lamp.  Then the candle is also a replica of the lamp.  As for good wishes, it is an expression of inner self, which only encourages.
See the wonder of Facebook that the best wishes start coming only after midnight.  I too started seeing me from the night itself.  There are a lot of readymade and thoughtful greetings messages among them.  This is the custom of the virtual world.  Those who greet on Facebook, they do not even consider it necessary to say hi-hello when they meet in front.  It's 4 o'clock in the evening and more than 160 Facebook friends have poured in their wishes.  In different style.  Some have written HBD and some have wished.  As if you were pelting stones in anger.  Sending some emoji too.  These are the wishes of respect, which are given to each other.  Their purpose is to save their reputation as Facebook friends.

The series of wishes does not end here.  Some are sending in Facebook Messenger and some in WhatsApp.  Most of them are relatives.  Especially those who send in WhatsApp.  The first greetings on WhatsApp were sent from my wife Rajni and little daughter Sakshi around 6.30 am.  Sakshi was telling her mother that today is her father's birthday and not on June 20.  That's why he didn't wish yesterday.  Rajni told this to me over the phone.  A very close friend Mukesh Nautiyal called me and wished me well.  So a friend sent a special message, with apologies.

This trend continued in the office as well.  Actually, on the birthday of any journalist fellow, a greeting message comes from the HR team from Headquarters Noida.  This message is copied to the entire staff, so most people politely wish the concerned reporter or desk mate.  This practice has been going on for the last eight years.  But, look at the fun, I have never received such a good luck mail, so nobody in the office even gets to know.  I don't even take otherwise for non-receipt of mail.  However, today I do not know how I came to know about two colleagues in the office and they also wished me the best.  I think they must have got this information from the Press Club group or Facebook itself.

Well!  This cycle will continue for a day or two.  Yes!  In this sense, this day is special for me that I have now resolved to read more books.  Good, informative, developing scientific temper, reasoning and progressive.  To be honest, books are my closest companion.  He guides me on the way forward and removes my troubles.  I have a dream that if I can build a house, it will also have my personal library.  Which will be the storehouse of rare books of the world.  Hope this dream will come true because it is the best dream in the world.

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