गांव की यादें मेरी धरोहर हैं
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दिनेश कुकरेती
गांव मुझे बडे़ अच्छे लगते हैं। सुविधा-संपन्न शहरों से भी अच्छे। हालांकि, मुझे गांव में रहने का सौभाग्य नहीं मिल पाया। तब मैं आठ साल का रहा हूंगा, जब मैंने परिवार के साथ गांव छोड़ दिया था। हालांकि, बाद के कई साल तक मेरी दादी गांव में ही रही, लेकिन हमारा दोबारा जाना नहीं हो पाया। बावजूद इसके जितने साल भी गांव में रहने का सौभाग्य मिला, उस दौर की यादें आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं। मेरा गांव पौडी़ गढ़वाल जिले के द्वारीखाल विकासखंड की लंगूर पट्टी में पड़ता है। गांव का नाम है भलगांव। अपने नाम के अनुरूप मेरे गांव पर प्रकृति हमेशा मेहरबान रही है। क्या नहीं है यहां। सिंचाई वाली जमीन है, फल-फूलों की भरमार, शीतल जल के प्राकृतिक स्रोत, और भी बहुत-कुछ।
जब कभी मुझे गांव की याद आती है, बचपन के सारे दृश्य सजीव हो उठते हैं। मसलन आडू़, बडे़ नींबू और अखरोट के पेड़। इनमें से आडू़ का एक पेड़ चौक (आंगन) के आगे सगोडे़ (साग-सब्जी का खेत) में था और दूसरा चौक के किनारे उस जगह, जहां हम बर्तन धोया करते थे। यहां लगातार पानी गिरने के कारण जमीन हमेशा नम रहती थी। इसकी परिणति यह हुई कि यहां मौजूद पेड़ के पास आडू़ की एक कोंपल फूट पडी़। मैंने उसके चारों ओर मिट्टी की दीवार खडी़ कर दी, ताकि गलती से उस पर किसी का पैर न पडे़ या गाय-बछिया उसे अपना आहार न बना लें। धीरे-धीरे कोंपल विस्तार पाने लगी और तैयार होने लगा बडे़-बडे़ खुशबूदार मीठे रसीले लाल आडू़ वाला खूबसूरत पेड़। अब उसकी देखभाल घर वाले भी करने लगे।
आप यकीन नहीं करोगे, तब इस कलमी आडू़ की आसपास के गांवों में भी धूम हुआ करती थी। इन गांव से जब भी कोई हमारे घर आता, आडू़ साथ ले जाना नहीं भूलता था। दूसरे वाले पेड़ के फल भी थोडा़ छोटे होने के बावजूद इसी पेड़ के फलों की तरह स्वादिष्ट हुआ करते थे। नींबू का पेड़ भी फलों से लकदक रहता था। नींबू ज्यादा होने पर दादी उन्हें जमीन में गाड़ देती थी। सर्दियों में इन्हें मिट्टी के अंदर से बाहर निकाला जाता और फिर धूप में बैठकर छीला जाता। इसके बाद नींबू की छोटी-छोटी फांक बनाकर उसमें हरी मिर्च, धनिया व मुर्या की चटनी और चीनी मिलाई जाती। फिर सब चटखारे ले-लेकर इस कचबोली का जायका लेते। अखरोट के पेड़ मेरे घर से लगभग बीस मीटर की दूरी पर थे। लेकिन, डर के मारे मैं उधर नहीं जाता था।
मेरे घर के बायीं ओर एक संतरे का पेड़ हुआ करता था, जिस पर चाचा के परिवार का स्वामित्व था। हमारी दो गाय भी थी एक काले और दूसरी सफेद रंग की। सफेद वाली गाय बेहद शांत एवं सौम्य स्वभाव की थी। मैं उसके गले से ही लिपटा रहता था। इसके अलावा हमारा एक कुत्ता भी था। उसे हमने नहीं पाला था, लेकिन रहता हमारे आंगन में ही था। इसलिए उसे हम अपना कुत्ता कहते थे। बेहद फुर्तीला, सतर्क और जिम्मेदार। न जाने कितनी बार वो लेपर्ड से भिडा़ होगा। उसको रोटी देने के बाद ही हम भोजन करते थे। सारे गांव वाले उसे भोजन देते थे।
हमारा चार घर मकान था यानी दो कमरे भूतल पर और दो पहली मंजिल में। भूतल वाले कमरे में हम रहते और ऊपर वाले में दादी। मैं अमूमन दादी वाले कमरे में ही सोता था। दादी बेहद झगडा़लु थी, लेकिन मुझे बहुत अच्छा मानती थी। हालांकि, इस उग्र स्वभाव के कारण धीरे-धीरे दादी मेरी नजरों से उतर गई और मेरी नफरत का पात्र बन गई। ...और भी बहुत सी यादें हैं मेरी गांव से जुडी़ हुई, जिन्हें आगे भी आपकी नजर करता जाऊंगा। फिलहाल तो वक्त काफी हो चला है और मुझे नींद भी आ रही है। इससे यादों का क्रम भी बाधित हो रहा है। इसलिए गुजारिश है कि अब आप भी नींद का आनंद लीजिए। शुभरात्रि!!
(जारी...)
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(part One)
Village memories are my heritage
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Dinesh Kukreti
I like the village very much. Better than the well-endowed cities. However, I did not get the privilege of living in the village. I would have been eight years old then, when I left the village with my family. Although my grandmother remained in the village for several years afterward, we could not go back. Despite this, all the years I got the privilege of living in the village, the memories of that period are still fresh in my mind. My village falls in the Langur belt of Dwarkhal development block of Pauri Garhwal district. The name of the village is Bhalgaon. As per its name, nature has always been kind to my village. What's not here. There is irrigated land, abundance of flowers and flowers, natural sources of soft water, and much more.
Whenever I remember the village, all my childhood scenes come alive. For example peach, large lemon and walnut trees. Of these, one peach tree was in the sagode (vegetable field) in front of the chowk (courtyard) and the other at the side of the square, where we used to wash dishes. The ground was always moist due to the continuous falling of water here. The result was that a peach blossom burst near the tree present here. I erected an earthen wall around it, so that no one's foot accidentally falls on it or cows and shepherds make it their food. Gradually, the bud began to expand and began to grow, a beautiful tree with big fragrant sweet juicy red peaches. Now the family members also started taking care of him.
You will not believe, then this Kalmy Peach used to be popular in the surrounding villages as well. Whenever anyone from these villages came to our house, he did not forget to take peaches with him. The fruits of the second tree were also as tasty as the fruits of the same tree, despite being slightly smaller. The lemon tree was also full of fruits. When there were more lemons, grandmother used to bury them in the ground. In winter, they were taken out from inside the soil and then peeled by sitting in the sun. After this, making small slices of lemon, green chili, coriander and murya chutney and sugar were mixed in it. Then take all the chatkhare and take the taste of this kachaboli. Walnut trees were about twenty meters from my house. But, out of fear, I did not go there.
There used to be an orange tree on the left side of my house, which was owned by uncle's family. We also had two cows, one black and the other white. The white cow was very calm and gentle. I used to wrap myself around his neck. Apart from this, we also had a dog. We did not raise him, but lived in our courtyard. That's why we called him our dog. Extremely agile, alert and responsible. Don't know how many times he will clash with Leopard. We used to eat food only after giving him bread. All the villagers used to give him food.
We had four houses i.e. two rooms on the ground floor and two on the first floor. We lived in the ground floor room and grandmother in the upstairs. I usually slept in my grandmother's room. Grandma was very quarrelsome, but considered me very nice. However, due to this fiery nature, gradually Dadi came out of my sight and became the object of my hatred. There are many more memories associated with my village, which I will keep seeing you in future also. Right now it's been enough time and I'm sleeping too. This also disrupts the sequence of memories. So it is requested that now you too enjoy your sleep. good night!!
(To be continued...)
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