बरसात बढ़ा रही मुश्किलें
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दिनेश कुकरेती
इस बार मानसून अपनी पूरी रंगत में है। शुरुआत में जरूर लग रहा था कि इस साल भी वर्षा ऋतु बिना बारिश के विदा हो जाएगी, लेकिन आषाढ़ के आखिर से बदरा बरसने लगे। सावन में तो लगभग रोज ही बारिश की झडी़ लगी रहती है। इससे हम जैसे कामकाजी लोगों की मुश्किलें बढ़ना लाजिमी है। अब देखिए, लगातार बारिश के चलते बाइक की टंकी में पानी आ गया है। इससे इंजन कहीं पर भी बंद हो जा रहा है। तीन-चार दिन से तो यह समस्या ज्यादा ही गहराई हुई है। बारिश थमे तो मैकेनिक के पास जाया जाए, लेकिन ऐसा भी नहीं हो रहा। मित्र नवल किशोर भी लगातार अपने घर बुला रहा है और मैं अब तक "हां-हां" कहकर टाले जा रहा था। लेकिन, दो दिन पूर्व मैंने इतवार को आने का वादा कर ही दिया।
आज इतवार है। सुबह ही नवल का फोन आ गया था कि, "साढे़ बारह-एक बजे तक पहुंच जाना, मैं सड़क में लेने आ जाऊंगा।" बेटी की बीमारी के चलते वो देहरादून में ही रह रहा है और यहां अजबपुर-सरस्वती विहार में किराये पर टू-रूम सैट लिया हुआ है। जबकि, स्कूल में ज्वाइनिंग उसकी ढांगू के ग्वील-जसपुर में है। मौसम का मूड आज भी उखडा़-उखडा़ सा है। लग रहा है बारिश होगी, पर मैंने भी ठान लिया है कि आज तो नवल से हर हाल में मिलकर रहूंगा। सो, साढे़ ग्यारह बजे के आसपास मैं घर से निकल पडा़, लेकिन पटेल नगर पहुंचते-पहुंचते बूंदाबांदी होने लगी। बाइक के बैग में बरसाती भी रखी हुई है, पर सड़क में पहनी नहीं जा सकती। सबसे बडी़ दिक्कत तो बाइक के बार-बार बंद होने से हो रही है।
खैर! बारह बजे मैं रिस्पना बाईपास हाइवे पर कैनरा बैंक के पास पहुंच गया। वहां नवल पहले से ही मेरा इंतजार कर रहा था। जिस मकान पर वह रहता है, वो अंदर गली में है, इसलिए मुझे रास्ता बताने वाला कोई तो चाहिए ही था। तकरीबन तीन साल बाद मेरी नवल से मुलाकात हो रही थी। बेटी की बीमारी के चलते वह बहुत परेशान है, ऐसे में कोई करीबी मिल जाए तो काफी सुकून मिल जाता है। एक-दूसरे से दर्द बांटने पर मन का बोझ भी हल्का हो जाता है। इसलिए मुझसे मिलकर उसके चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। लगभग दो घंटे मैं नवल के घर पर रहा हूंगा। भोजन भी वहीं किया। चावल, हरड़ की दाल, पालक की काफली और खीर बनवा रखी थी मामी से उसने।
अपराह्न पौने तीन बजे के आसपास मैं नवल के रूम से आफिस के लिए रवाना हुआ। बाइक ने तो परेशान करना था ही, इसलिए मैंने मन ही मन ठान लिया कि कल यानी सोमवार को मैकेनिक के पास जरूर जाऊंगा। विचार तो मैं यह भी कर रहा हूं कि अगले साल किश्तों पर नई बाइक ले ली जाए और इस बाइक को रिन्यूअल कर जितने में भी बिकती है, बेच दिया जाए। दो-तीन साल से हर बरसात ऐसे ही परेशान कर रही है। खैर! ये बाद की बातें हैं, फिलहाल तो कल मैकेनिक के पास टंकी साफ कराने जाना है।
इसी उधेड़बुन के बीच यही कोई बीस मिनट लगे होंगे मुझे आफिस पहुंचने में। आज घर में बात नहीं हो पाई थी, इसलिए लाइब्रेरी में आकर सबसे पहला काम घर फोन करने का ही किया। हालांकि, डेढ़ बजे के आसपास रजनी का फोन आया था, लेकिन तब मैं नवल के घर पर था, इसलिए "बाद में बात करूंगा" कहकर फोन काट दिया। तकरीबन पंद्रह मिनट बात हुई होगी, फिर मैं अपने काम में जुट गया। ...फिलहाल रात के बारह बज चुके हैं और मैं अब बिस्तर में जाने की तैयारी कर रहा हूं। अभी कुछ देर एकाध यू-ट्यूब चैनल देखूंगा, कुछ गज़ल सुनूंगा और फिर नींद के आगोश में चला जाऊंगा।
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Rain increasing difficulties
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Dinesh Kukreti
This time monsoon is in full swing. In the beginning it seemed that this year too the rainy season would go away without rain, but from the end of Ashadh it started raining badly. In Sawan, it rains almost daily. This is bound to increase the difficulties of working people like us. Now see, due to continuous rain, water has come in the tank of the bike. This causes the engine to stop at some point. After three or four days, this problem has become more and more serious. If the rain stops, go to the mechanic, but this is not happening either. Friend Naval Kishore is also constantly calling his house and I was being avoided by saying "yes-yes" till now. But, two days ago, I made a promise to come on Sunday.
Today is sunday. In the morning, Naval's call came that, "Reaching by 12.30 pm, I will come to pick you up on the road." Due to his daughter's illness, he is staying in Dehradun and has taken a two-room set on rent at Ajabpur-Saraswati Vihar. Whereas, his joining school is in Gweel-Jaspur, Dhangu. The mood of the weather is still rough today. Looks like it will rain, but I have also decided that today I will meet Naval in any situation. So, I left the house around 11.30 pm, but by the time we reached Patel Nagar, it started drizzling. The raincoat is also kept in the bag of the bike, but it cannot be worn on the road. The biggest problem is due to frequent shutdown of the bike.
So! At 12 o'clock I reached near Canara Bank on Rispana Bypass Highway. There Naval was already waiting for me. The house where he lives is inside the street, so I needed someone to guide me. About three years later, I was meeting Naval. She is very upset due to the daughter's illness, in such a situation, if she meets someone close, she gets a lot of relief. By sharing the pain with each other, the burden of the mind also becomes lighter. That's why the happiness was clearly visible on his face meeting me. I have been at Naval's house for almost two hours. Had food there too. He had made rice, myrobalan dal, spinach kafali and kheer from his maternal uncle.
Around 3.45 pm, I left for the office from Naval's room. The bike had to bother me, so I made up my mind that I will definitely go to the mechanic tomorrow i.e. on Monday. I am also thinking of getting a new bike on installments next year and renewing this bike and selling it for whatever it is sold for. Every rain for two-three years is troubling like this. So! These are later things, for now, tomorrow I have to go to the mechanic to get the tank cleaned.
In the midst of this chaos, it must have taken me some twenty minutes to reach the office. Today there was no talk in the house, so the first thing to do after coming to the library was to call home. However, Rajni's call came around 1.30 pm, but I was at Naval's house then, so disconnected the call saying "will talk later". It must have been about fifteen minutes, then I got busy with my work. ...It's twelve o'clock at night and I'm getting ready to go to bed. Right now, I will watch a few YouTube channels for some time, listen to some ghazals and then go into the lap of sleep.
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