Friday, 30 July 2021

19-07-2021 (बारिश के बीच दून वापसी)

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बारिश के बीच दून वापसी
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दिनेश कुकरेती

रात से ही बारिश हो रही है। कब रुकेगी, कहा नहीं जा सकता। यही वर्षा ऋतु का स्वभाव भी है। पर, मुझे तो आज हर हाल में देहरादून पहुंचना है, इसलिए बिस्तर त्यागने के साथ ही मैं अपनी तैयारियों में जुट गया हूं। भोजन भी तैयार हो चुका है। लौटने वाले दिन मैं रोटी के बजाय दाल-भात (दाल-चावल) खाना ही पसंद करता हूं, इसलिए मेरी पसंद का ही भोजन बना है। बैग भी पैक करके मैंने किनारे रख लिया है और भोजन के लिए पालथी बांधकर जमीन पर बैठ गया हूं। भोजन मैं जमीन पर बैठकर करना ही पसंद करता हूं। घर में तो ये मेरे लिए अनुशासन का हिस्सा है। विज्ञान भी जमीन पर आराम से बैठकर भोजन करने को ही सर्वोत्तम मानता है, बस! जगह साफ-सुथरी होनी चाहिए। फिर मैं तो विज्ञान का विद्यार्थी जो हूं।
















इस बीच रजनी ने चावल और लाने को कहा तो मैंने मना कर दिया। सुबह-सुबह कहां इतना खाया जाता है। देखा जाएगा, दिन में भूख लगेगी तो फल खा लूंगा। रजनी ने फल, बिस्कुट, नमकीन- सभी-कुछ बैग में रखा है। बारिश अब भी जारी ले, लेकिन सवा नौ बज चुके हैं और मुझे देहरादून पहुंचने की जल्दी है। पता है क्यों? भई! पानी की वजह से। दरअसल जिस इलाके में मैं रहता हूं, वहां गर्मियों में पानी की भारी किल्लत हो जाती है। इस साल तो कुछ ज्यादा ही है। पानी दोपहर बारह बजे के आसपास आता है और कुछ ही देर में बंद भी हो जाता है। इसके बाद ढाई बजे के आसपास पानी आने का टाइम है, लेकिन रोजाना आएगा, इसकी गारंटी नहीं। रात को 11 बजे पानी आता है, लेकिन इन दिनों अनिश्चितता की स्थिति है। मेरे जल्दी जाने की यही मुख्य वजह है।

बारिश के बीच ही ठीक सवा नौ बजे मैं घर से निकल गया। बीस मिनट लगे नजीबाबाद रोड चौक स्थित टैक्सी स्टैंड पहुंचने में। उस समय देहरादून के लिए एक टैक्सी निकल रही थी। तभी एक अन्य टैक्सी वाला देहरादून-देहरादून पुकार लगाने लगा। मैं उसी में बीच की सीट पर जा बैठा। आधा घंटा लगा, टैक्सी को फुल भरने में और फिर फुहारों के बीच निकल पडी़ टैक्सी देहरादून के लिए। वैसे मुझे बस-टैक्सी या कार में बैठते ही नींद आ जाती है, लेकिन आज न जाने क्यों वह मेरे पास नहीं फटक रही। बारिश के कारण बैग भी मैंने अपने पास ही रखा है। दिक्कत तो हो रही है, पर इसके सिवा कोई विकल्प भी तो नहीं। खैर! यह सब तो चलता रहता है, मुश्किलें न हों तो फिर जीने के मायने ही क्या हैं। संघर्ष से ही तो इन्सान आगे बढ़ता है।

अब मैं हरिद्वार में हूं। गंगा अपने पूरे वेग से बह रही है। इस समय उसमें अथाह पानी है, लेकिन सौंदर्य भी अद्भुत है। सच कहूं तो गंगा की झलकभर देखने से ही मन को असीम आनंद की अनुभूति हो उठती है। वास्तव में हम कितने सौभाग्यशाली हैं, जिनके पास गंगा जैसी विलक्षण नदी है। जिसका स्पर्श करने को पूरी दुनिया लालायित रहती है। टैक्सी तेजी से हाइवे पर आगे बढ़ रही है। अब ज्यादा से ज्यादा एक-सवा घंटा लगेगा देहरादून पहुंचने में। भानियावाला में दो सवारियों के उतरने से काफी आराम हो गया है। अब बैग भी मैंने सीट पर ही रख दिया। अरे! यह क्या? डोईवाला पहुंचते ही ड्राइवर ने टैक्सी दूधली वाले रूट पर डाल दी।

संयोग से देहरादून में रिस्पना पुल से  पहले किसी को उतरना नहीं है, इसलिए दूधली वाले रूट से जाने में कोई आपत्ति नहीं। ड्राइवर का कहना है कि उसे रास्ते में कोई जरूरी सामान खरीदना है। यह रास्ता बडा़ रौनक वाला है। चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। सड़क के एक ओर घना जंगल है, इसलिए इस रूट पर सुबह-शाम वन्य जीव आसानी से दिख जाते हैं। हाथी तो कभी-कभी दुपहरी में भी सड़क पर आ जाते हैं। जैसे ही हमने देहरादून की सीमा में प्रवेश किया, एक दुकान के सामने ड्राइवर ने टैक्सी रोकी और वहां बैठे दो व्यक्तियों (एक युवा और एक उम्रदराज) की ओर इशारा करते उन्हें सामान देने को कहा। उम्रदराज व्यक्ति ने काउंटर पर रखी दरी को उठाया और दो पैकेट निकालकर ड्राइवर को थमा दिए।

 











पैकेट देख ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो चने के पैकेट हों, लेकिन मन में सवाल उठ रहा था कि दुकानदार ने ये पैकेट छिपाकर क्यों रखे थे। सामान लेने के बाद ड्राइवर ने टैक्सी आगे बढा़ई और अपनी और देख रहे पास बैठे व्यक्ति से मुखातिब होते हुए बोला- ये नशा है और यहीं मिलता है। इसी के लिए इधर से आना पडा़। हालांकि, किसी ने भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। आगे हाईवे में पहुंचने पर उसने टैक्सी का स्टेयरिंग रिस्पना पुल की ओर घुमा दिया। बारिश बूंदाबांदी तक सिमट चुकी थी, लेकिन टैक्सी से उतरते ही फिर तेज हो गई। मैं छाता खोलकर हरिद्वार रोड के कार्नर पर विक्रम (आटो) का इंतजार करने लगा। काफी विलंब से विक्रम मिल पाया और रास्तेभर जाम लगा होने के कारण प्रिंस चौक पहुंचने में भी काफी देर हो गई।

प्रिंस चौक में भी काफी विलंब से विक्रम मिला, इसलिए मुझे रूम तक पहुंचने में दो बज गए। सुखद यह है कि ढाई बजे के आसपास पानी भी आ गया। मैंने फटाफट दो बाल्टियां भरी और सुकून से आफिस के लिए प्रस्थान किया। हालांकि, जल्दबाजी के चलते फल खाने का मौका नहीं मिल पाया। आठ-साढे़ आठ घंटे बाद अब रूम में पहुंचा हूं। रात के ग्यारह बज रहे हैं और थके होने के कारण फिलहाल दलिया बनाना ही मुझे सबसे उपयुक्त लग रहा है। यह हल्का, पौष्टिक और पाचक भोजन है। बाकी सुबह की सुबह देखी जाएगी। वैसे भी सब्जी मैं ले ही आया हूं।

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Doon return amid rain

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Dinesh Kukreti

It has been raining since night.  Can't say when it will stop.  This is also the nature of the rainy season.  But, I have to reach Dehradun today by all means, so along with leaving the bed, I have started my preparations.  The food is also ready.  On the returning day, I prefer to eat dal-bhaat (lentil-rice) instead of roti, hence my choice of food is prepared.  I have also packed the bag and kept it aside and sat on the ground, tying a cross for food.  I prefer to eat food while sitting on the ground.  At home, it is a part of discipline for me.  Science also considers it best to have food sitting comfortably on the ground, that's all!  The place should be clean.  Then I am a student of science.

Meanwhile, when Rajni asked to bring more rice, I refused.  Where do you eat so much in the morning?  It will be seen, if I feel hungry during the day, I will eat fruits.  Rajni has kept fruits, biscuits, namkeen - everything in the bag.  The rain may still continue, but it is quarter past nine and I am in a hurry to reach Dehradun.  know why?  Hey!  Because of water.  In fact, in the area where I live, there is a severe shortage of water in summers.  This year is a little more.  The water comes around 12 noon and stops shortly after.  After this, there is time for water to come around 2.30 pm, but there is no guarantee that it will come daily.  Water comes at 11 o'clock in the night, but these days there is a situation of uncertainty.  This is the main reason for my early departure.

I left the house at exactly nine:15 in the middle of the rain.  It took 20 minutes to reach the taxi stand located at Najibabad Road Chowk.  At that time a taxi was leaving for Dehradun.  Then another taxi driver started calling Dehradun-Dehradun.  I sat in the middle seat in that.  It took half an hour, to fill the taxi to full and then the taxi left for Dehradun between the showers.  Well, I fall asleep as soon as I sit in a bus-taxi or car, but today I don't know why it is not coming near me.  I have also kept the bag with me because of the rain.  There is a problem, but there is no other option than this.  So!  All this goes on, if there are no difficulties then what is the meaning of living.  Man progresses only through struggle.

Now I am in Haridwar.  The Ganges is flowing at its full speed.  At this time there is boundless water in it, but the beauty is also wonderful.  To be honest, just seeing a glimpse of the Ganges gives a feeling of immense joy to the mind.  How fortunate indeed we are to have a wonderful river like the Ganges.  Whose whole world longs to touch.  The taxi is moving fast on the highway.  Now it will take at most one-and-a-half hours to reach Dehradun.  The landing of two passengers at Bhaniyawala has brought a lot of relief.  Now I put the bag on the seat itself.  Hey!  What is this?  As soon as he reached Doiwala, the driver put the taxi on the Dudhli route.
















Incidentally, no one has to get down before the Rispana bridge in Dehradun, so there is no objection to going through the Dudhli route.  The driver says that he has to buy some essential items on the way.  This road is very beautiful.  Greenery is visible all around.  There is a dense forest on one side of the road, so wildlife is easily visible in the morning and evening on this route.  Elephants sometimes come on the road even in the afternoon.  As we entered the Dehradun border, the driver stopped the taxi in front of a shop and pointed to two persons sitting there (one young and one old) asking them to deliver the goods.  The old man picked up the carpet kept on the counter and took out two packets and handed them to the driver.

Seeing the packet, it seemed as if there were packets of gram, but the question was arising in the mind that why the shopkeeper had kept these packets hidden.  After taking the goods, the driver proceeded to take the taxi and while talking to the person sitting nearby looking at him, he said – this is intoxication and it is found here.  That's why I had to come from here.  However, no one paid heed to his words.  On reaching the highway further, he turned the steering response of the taxi towards the bridge.  The rain had stopped till drizzle, but it intensified again as soon as I got down from the taxi.  I opened my umbrella and started waiting for Vikram (auto) at the corner of Haridwar road.  Vikram was found with a long delay and due to the jam all along the way, it was too late to reach Prince Chowk.

Vikram got late at Prince Chowk too, so it took me two o'clock to reach the room.  The good thing is that around 2.30 pm the water also came.  I quickly filled two buckets and left for the office with ease.  However, due to haste, I did not get a chance to eat the fruit.  After eight-and-a-half hours I have now reached the room.  It is eleven o'clock in the night and being tired, I am finding it best to make porridge at the moment.  It is light, nutritious and digestible food.  The rest will be seen in the early morning.  Anyway, I have brought vegetables.

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